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________________ ४५९ स्थूल-परिग्रह-परिमाण-व्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्षदिवस में सूक्ष्म या बादर जानते. अजानते लगा हो. वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं । छट्टे दिक-परिमाण-व्रत के पांच अतिचार-"गमणस्स उ परिमाणे." ऊर्ध्व-दिशि, अधो-दिशि, तिर्यग्-दिशि जानेआने के नियमित परिमाण उपरांत भूल से गया। नियम तोड़ा । परिमाण उपरांत सांसारिक कार्य के लिये अन्य देश से वस्तु मँगवाई । अपने पास से वहाँ मेजी । नौका-जहाज़ आदि द्वारा व्यापार किया । वर्षाकाल में एक ग्राम से दूसरे ग्राम में गया । एक दिशा से परिमाण को कम दिशा में अधिक गया। इत्यादि छठे दिक्-परिमाण व्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं । ___ सातवें भोगोपभोग-व्रत के भोजन आश्रित पाँच अतिचार और कर्म आश्रित पंद्रह अतिचार-"सच्चित्ते पडिबद्धे." सचित्त, खान-पान की वस्तु नियम से अधिक स्वीकार की। सचित्त से मिली हुई वस्तु खाई । तुच्छ औषधि का भक्षण किया। अपक्क आहार, दुपक्क आहार किया । कोमल इमली, बूँट,* भुट्टे, फलियां आदि वस्तु खाई। सचित्त१- दव्वर * हरे चने । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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