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४५७ गौ, भूमि सम्बन्धी लेन-देन में लड़ते-झगड़ते, वाद-विवाद में मोटा झूठ बोला । हाथ-पैर आदि को गाली दी । मर्म वचन बोला। इत्यादि दसरे स्थल-मृषावाद-विरमण-व्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं ॥
तीसरे स्थूल-अदत्तादान-विरमण-व्रत के पाँच अतिचार"तेनाहडप्पओगे.” घर, बाहिर, खेत, खला में, बिना मालिक के भेजे वस्तु ग्रहण की, अथवा आज्ञा बिना अपने काम में ली । चोरी की वस्तु ली। चोर को सहायता दी । राज्य-विरुद्ध कर्म किया। अच्छी, बुरी, सजीव, निर्जीव नई पुरानी वस्तु का मेल संमेल किया। जकात की चोरी की, लेते देते तराजू की डंडी चढ़ाई। अथवा देते हुए कमती दिया, लेते हुए अधिक लिया, रिश्वत खाई । विश्वास-घात किया, ठगी की, हिसाब-किताब में किसी को धोखा दिया। माता, पिता, पुत्र, मित्र, स्त्री आदिकों के साथ ठगी कर किसी को दिया, अथवा पूजी अलहदा रखी। अमानत रखी हुई वस्तु से इन्कार किया। पड़ी हुई चीज उठाई, इत्यादि तीसरे स्थूल अदत्तादान विरमण-व्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं ॥
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