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________________ ओला-सिके हुए हरे चने, । महोर-आम आदिको मञ्जरी । होले। । आँवल बोर-बड़े बेर । उंबी-गेहूँ, बाजरी, जव आदि लगभग वेला-सूर्य अस्त होनेके धान्यके सिके हुए इंडिये। समय । पोंक-जुवार, बाजरी आदिके कच्चे वालू-साँझका भोजन। धान्यको सेक कर या भूनकर निकाले हुए कण । शीराव्या-कलेवा किया, प्रातः कालका नाश्ता किया। पापडी-वालकी फलो, वालोरकी रांगण-रङ्गका काम कराया। फली। लिहाला कराव्या- कोलसे सचित्त-दव्व-विगई० ॥ इस बनवाये। गाथाके अर्थ के लिये देखो सूत्र ३२, गाथा २८ का अर्थ | दलीदो कीधो-तिल, गुड और धानी एक साथ कूट कर खाद्य विस्तार । सामग्री बनायी। वाघरडां-सर्वथा नरम ककड़ी। अंगीठा-सिगड़ी, भट्ठी, चूल्हा वासी-एक दिन पूर्व बनाया | आदि । हुआ, बासी। | सालही-वनके तोता-मैना । अधिक समय रहनेसे बिगड़ा | | खरकर्मादिक-बहुत उग्र हिंसा हुआ पर्युषित अन्न । वासित शब्दसे बासी शब्द हो ऐसे कार्य । बना है। यह विशेषण- संध्र क्या-फूंक कर जलाया। कठोल, पूरणपूरी और रोटी | कदप्पे कुक्कुश्ए०-इस गाथाके इन तीनोंको उद्देश करके अर्थके लिए देखो सूत्र ३२, कहा गया है। __ गाथा २६ । ओदन-राँधे हुए चावल। कंदर्प लगे-काम-वासनासे । करहा-ओले, बरसातो बर्फ के | विटचेष्टा-अधम कोटिकी शृङ्गार चेष्टा। टुकड़े। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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