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________________ ४२७ विचिकित्सा-धर्म-संबंधीया फलतणे विषे संदेह कीधो, जिन अरिहंत, धर्मना आगर, विश्वोपकार सागर, मोक्षमार्गना दातार, इस्या गुण भणी न मन्या, न पूज्या, महासती महात्मानी इहलोक परलोक संबंधीया भोग-वांछित पूजा कीधी। रोग, आतंक, कष्ट आव्ये खीण वचन भोग मान्या, महात्माना भात, पाणी, मल, शोभा-तणी निंदा कोधी, कुचारित्रीया देखी चारित्रोया उपर कुभाव हुओ, मिथ्यात्वी-तणी पूजा-प्रभावना देखी प्रशंसा कीधी, प्रीति मांडी, दाक्षिण्य-लगे तेहनो धर्म मान्यो, कीधो। श्रीसम्यकत्व-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्षदिवसमाहि० ।। १॥ पहेले स्थूल प्राणातिपात-विरमण-व्रते पांच अतिचारवह-बंध-छविच्छेए० ॥ द्विपद, चतुष्पद प्रत्ये रीस-वशे गाढो घाव घाल्यो, गाढे बंधने बांध्यो, अधिक भार घाल्यो, निलांछन-कर्म कीधा, चारा-पाणो-तणी वेलाए सार-संभाल न कीधी, लेहणे-देहणे किणही प्रत्ये लंघाव्यो, तेणे भूख्ये आपणे जम्या, कन्हे रही मराव्यो, बंदीखाने घलाव्यो। ___ सल्यां घान्य तडके नांख्यां, दलाव्यां, भरडाव्यां, शोधी न वावर्यां; इंधण-छाणां अणशोध्यांबाळ्यां, तेमांहि साप, विंछी, खजूरा, सरवला, मांकड, जूआ, गोंगोडा साहतां मुआ, दुहव्या, रूडे स्थानके न मूक्या; कोडी-मकोडोनां इंडां विछोह्यां, लीख फोडी, उद्देही,कीडी, मंकोडो, घीमेल, कातरा, चूडेल, पतंगीयां, देडकां, अलसीयां, ईयल, कुंतां, डांस, मसा, बगतरा, माखी, तीड-प्रमुख जीव विणट्ठा; माला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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