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चारित्राचारे आठ अतिचारएणिहाण-जोग-जुत्तो, पंचहि समिईहिं तीहिं गुत्तोहिं । एस चरित्तायारो, अट्ठाविहो होइ नायव्वो ॥ १॥
ई-समिति ते अणजोये होड्या, भाषा-समिति ते सावध वचन बोल्या, एषणा-समिति ते तृण, डगल, अन्नपाणो, असूजतु लोधु, आदान-भंडमत्त-निक्खेवणा-समिति ते आसन, शयन, उपकरण, मातरं प्रमुख अणपुंजी जीवाकुल भूमिकाए मूक्यु, लोधु, पारिष्ठापनिका-समिति ते मलमूत्र, श्लेष्मादिक अणपुंजो जीवाकुल भूमिकाए परठव्यु ।
मनो-गुप्ति-मनमां आर्त-रौद्रध्यान ध्यायां, वचन-गुप्तिसावद्य वचन बोल्यां; काय-गुप्ति-शरीर अणपडिलेडं हलाव्यु, अणपुंजे बेठा। ___ ए अष्ट प्रवचन-माता साधु-तणे धर्म सदैव अने श्रावक-तणे धर्म सामायिक पोसह लीधे रूडी पेरे पाल्यां नहीं, खंडणा-विराधना हुई।
चारित्राचार-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष-दिवसमांहि० ॥ १॥ __विशेषतः श्रावक-तणे धर्मे श्रीसम्यक्त्व-मूल बार व्रत [ तेमां ] सम्यक्त्व-तणा पांच अतिचार
'संकाकखविगिच्छा.' ॥ प्र-२७
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