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________________ २४ ध्यानमें जोड़ता हूँ और जबतक 'नमो अरिहंताणं' यह पद बोलकर कायोत्सर्ग पूर्ण न करूँ, तबतक अपनी कायका सर्वथा त्याग करता हूँ। सूत्र-परिचय प्रस्तुत सूत्रमें कायोत्सर्गके आगारोंकी गणना की है तथा कायोत्सर्गका समय, स्वरूप और प्रतिज्ञा प्रदर्शित की है। उसमें ' अन्नत्थ ऊससिएणं' से 'हुज्ज मे काउस्सग्गो' तकके भागमें कायोत्सर्गके आगार हैं, 'जाव अरिहंताणं 'से 'न पारेमि ताव ' पर्यन्तके भागमें कायोत्सर्गका समय है, ' कायं 'से ' झाणेणं' पर्यन्तके भागमें कायोत्सर्गका स्वरूप है और 'अप्पाणं वोसिरामि' इन शब्दोंमें कायोत्सर्गकी प्रतिज्ञा । कायोत्सर्ग प्रश्न-कायोत्सर्गका अर्थ क्या है ? उत्तर-कायका उत्सर्ग । प्रश्न-काय अर्थात् ? उत्तर-देह अथवा शरीर । परन्तु यहाँ इसका अर्थ प्रवृत्तिवाला शरीर ऐसा समझना चाहिये। प्रश्न-उत्सर्ग अर्थात् ? उत्तर—त्याग । प्रश्न-इस प्रकार कायोत्सर्गका अर्थ क्या हुआ ? उत्तर-प्रवृत्तिवाले शरीरका त्याग करना, अर्थात् शरीरद्वारा प्रवृत्ति करना छोड़ देना। प्रश्न-क्या कायोत्सर्ग में शरीरद्वारा किसी प्रकारकी प्रवृत्ति नहीं की जाती है ? उत्तर-कायोत्सर्गमें शरीरद्वारा उतनी ही प्रवृत्ति की जाती है जो ध्यानमें स्थिर रहनेके लिये उपयोगी हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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