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________________ ३७८ अर्थ- सङ्कलना ॐ श्री, ह्री, धृति, मति, कीर्ति, कान्ति, बुद्धि, लक्ष्मी और मेधा इन नौ स्वरूपवाली सरस्वती की साधना में, योगके प्रवेशमें तथा मंत्रजपके निवेशन में जिनके नामोंका आदर-पूर्वक उच्चारण किया जाता है, वे जिनवर जयको प्राप्त हों - सान्निध्य करनेवाले हों ।। ६ ।। मूल (४) रोहिणी - प्रज्ञप्ति - वज्रशृङ्खला - वज्राङ्कुशी - अप्रतिचक्रा - पुरुषदत्ता - काली - महाकाली - गौरी - गान्धारी - सर्वास्त्रमहाज्वाला - मानवी - वैरोट्या - अच्छुप्ता - मानसी - महामानसी - षोडशविद्या देव्यो रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा ॥ ७ ॥ शब्दार्थ स्पष्ट है । अर्थ- सङ्कलना ॐ रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृङ्खला, वज्राङ्कुशी, अप्रतिचक्रा, पुरुषदत्ता, काली, महाकाली, गौरी, गान्धारी, सर्वास्त्रमहाज्वाला, मानवो, वैरोट्या, अच्छुप्ता, मानसी और महामानसी ये सोलह विद्यादेवियाँ तुम्हारा रक्षण करें । मूल (५) ॐ आचार्योपाध्याय - प्रभृति चातुर्वर्णस्य श्रीश्रमण - सङ्घस्य शान्तिर्भवतु तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु ॥ ८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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