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________________ ३७७ करनेके प्रसङ्गमें),गहन अटवीमें। रक्षन्तु-रक्षण करें। (प्रवास करनेके प्रसङ्गमें)। व:-तुम्हारा । दुर्गमार्गेषु-विकट मार्गोका उल्ल- नित्यं-नित्य । ङ्घन करते समय । स्वाहा-स्वाहा । अर्थ-सङ्कलना ॐ शत्रुओंद्वारा किये गये विजय-प्रसङ्गमें दुष्कालमें ( प्राण धारण करनेके प्रसङ्गमें ), गहन-अटवीमें (प्रवास करनेके प्रसङ्गमें) तथा विकट मार्गका उल्लङ्घन करते समय मुनियोंमें श्रेष्ठ ऐसे मुनि तुम्हारा नित्य रक्षण करें। स्वाहा ।। ५ ।। मूल - (३) ॐ श्री-ही-धृति-मति-कीर्ति-कान्ति-बुद्धिलक्ष्मी-मेधा-विद्या-साधन-प्रवेश-निवेशनेषु सुगृहीतनामानो जयन्तु ते जिनेन्द्राः ॥ ५॥ शब्दार्थ ॐ-ॐ। सुगृहीत-नामानः-अच्छी तरह श्री-ही-धति- मति-कोति- उच्चारण किये गये नामवाले, कान्ति बुद्धि लक्ष्मी- मेधा - जिनके नामोंका आदरपूर्वक विद्या- साधन- प्रवेश-नि- उच्चारण किया जाता है। वेशनेषु-श्रो, ह्री, धृति, मति, जयन्तु-जयको प्राप्त हों, सान्निध्य कोति, कान्ति, बुद्धि, लक्ष्मी और करनेवाले हों। मेधा इन नौ स्वरूपवाली सरस्वतीकी साधनामें योगके प्रवेश- तव । में तथा मन्त्र-जपके निवेशनमें । जिनेन्द्राः -जिनवर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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