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तं मोएउ अ नंदि, पावेउ अ नंदिसेणमभिनंदि । परिसा वि अ नंदि, मम य दिसउ संजमे नंदि॥३८॥[३७]
-गाहा ॥ शब्दार्थएवं-इस प्रकार।
मे-मेरे। तव-बल - विउलं - तपोबलसे विसायं-क्लेशको। महान् ।
कुणउ-करो। थुयं-स्तुत ।
अपरिसाविअ- पसायं - कर्मका मए--मेरेद्वारा।
आस्रव दूर करनेवाला प्रसाद । अजिय-संति-जिण – जुअलं- तं-वह ( युगल)।
श्रीअजितनाथ और श्रीशांति- । मोएउ-हर्षप्रदान करे। नाथका युगल ।
अ-और। ववगय-कम्म- रय-मलं-कर्म- नंदि-नन्दिको, सङ्गीतविशारदोंको ।
रूपी रज और मलसे रहित । पावेउ-प्राप्त कराये । ववगय-रहित । कम्म-कर्म ।
नंदिसेणं-नन्दिषेणको । रय-रज । मल-मल ।
अभिनंदि-अति आनन्द । गई गयं-गतिको प्राप्त । सासयं-शाश्वत ।
परिसा वि-परिषद्को भी । विउलं-विशाल ।
अ-और। त-उन ।
सुह-नदि-सुख और समृद्धि । बहु-गुण-प्पसायं-अनेक गुणोंसे
मम-मुझे। युक्त।
य-और। मुक्ख-सुहेण-मोक्षसुखसे ।
दिसउ-प्रदान करो। परमेण-परम । अविसायं-क्लेश रहित ।
संजमे-संयममें। नासेउ-नष्ट करो।
नंदि-वृद्धि।
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