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शब्दार्थछत्त - चामर - पडाग - जूअ- चक्रके चिह्नवाले ।
जव-मंडिआ-छत्र, चामर, सत्थिअ-स्वस्तिक । वसहपताका, स्तम्भ और जव
बैल । सीह-सिंह। रहद्वारा शोभित ।
रथ। चक्क-चक्र । वरछत्त-छत्र। चामर-चँवर । श्रेष्ठ । अंकिय-चिह्नवाले। पडाग - पताका, ध्वजा।।
| सहाव-लट्ठा-स्वरूपसे सुन्दर । जव-यूप, स्तम्भ विशेष । । जव-यव नामक धान्यकी
सहाव-स्वरूप। लट्ठ-सुन्दर । आकृति । मंडिअ-शोभित । सम-प्पइट्ठा-समभावमें स्थिर झयवर - मगर- तुरय-सिरि- सम-समभाव । प्पइट्ठ-स्थिर ।
वच्छ-सुलंछणा-श्रेष्ठ ध्वज, | अदोस-दुट्ठा-दोष रहित । मगर ( घड़ियाल ), अश्व और । गुणेहिं जिटटा-गुणोंसे अत्यन्त श्रीवत्सरूप सुन्दर लाञ्छनवाले। महान् । झयवर-श्रेष्ठ ध्वज। मगर- पसाय- सिट्ठा- कृपा करने में घड़ियाल । तुरय-अश्व ।।
उत्तम। सिरिवच्छ-श्रीवत्स । सूल
पसाय-कृपा । सिट्ठ-उत्तम । क्षणा-सुन्दर लाञ्छनवाले। | तवेण पुछा-तपके द्वारा पुष्ट । दीव- समुद्द- मंदर- दिसागय- तव-तप । पुट्ट-पुष्ट । सोहिया-द्वीप, समुद्र, मन्दर
सिरीहिं इठा-लक्ष्मोसे पूजित । पर्वत और ऐरावत हाथीके रिसोहिं जुट्ठा-ऋषियोंसे सेवित। लाञ्छनसे सुशोभित । ते-वे। दीव-द्वीप समुद्द-समुद्र । तवेण-तपके द्वारा।
धुय-सव्व-पावया-सर्व पापोंको गय-दिशाओंके हाथी, ऐरा
दूर करनेवाले। वतादि। सोहिय-शोभित ।
धुय-दूर करना। सत्थिअ - वसह -- सीह- रह - सव्व - लोअ - हिय - मूल -
चक्क- वरंकिया- स्वस्तिक, पावया-समग्र प्राणि-समूहको बैल, सिंह, रथ और श्रेष्ठ ! हितका मार्ग दिखानेवाले ।
मदर
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