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________________ ३५६ सोहिय-शोभायमान । सोणि । जस्स-जिनका । -तड-नितम्ब-प्रदेश। ते वे। वर-खिखिणि-नेउर-सतिलय- सुविक्कमा-बहुत पराक्रमवाले, वलय-विभूसणिआहिं-उत्तम सम्यग् पराक्रमवाले । प्रकारकी करधनीवाले नूपुर कमा-चरण, दोनों चरण । और टिपकियोंवाले कङ्कण अप्पणो-अपने । आदि अनेक प्रकारके आभूषणों निडालरहि-ललाटोंसे । को धारण करनेवाली। मंडणोड्डण-प्पगारएहि-शृङ्गारवर-श्रेष्ठ, उत्तम । खिखिणि के बड़े प्रकारोंसे । किङ्किणी, घूघरियाँ । नेउर मंडण-शृङ्गार । उड्डण-बड़ा । --नूपुर । सतिलय-बिन्दी प्पगारअ-प्रकार ।। अथवा टिपकियोंवाले। वलय ! केहि केहि वि-किन्हीं, किन्हीं, विविध । -कङ्कण । विभूसणिआअनेक प्रकारके आभषणों- अवंग-तिलय-पत्तलेह-नामको धारण करनेवाली। अपाङ्ग-तिलक और पत्रलेखा रइकर-चउर-मणोहर -सुन्दर नामक, आँखोंमें कज्जल, -दंसणिआहि-प्रीति उत्पन्न ललाटपर तिलक और स्तनकरनेवाली, चतुरोंके मनको मण्डलपर पत्रलेखा। हरण करनेवाली. और सुन्दर अवंग-नत्रका अन्तिम भाग । दर्शनवाली। तिलय-चन्दन आदि पदार्थोंरईकर-प्रीतिकर। चउर- द्वारा ललाटपर किया जाने चतुर। मणोहर-मनोहर । वाला एक प्रकारका चिह्न, दंसणिआ-दर्शनवाली। टोका, बिन्दी आदि । पत्तदेव-सुदरीहिं-देवाङ्गनाओंसे । लेह-कपोल तथा स्तनपाय-वंदियाहि-चरणोंको नमन मण्डलपर कस्तूरी आदि करनेके लिये तत्पर । सुगन्धित पदार्थोसे बनायी वंदिया-वन्दित हैं। जानेवाली आकृतियाँ । य-और। नामअ-नामवाली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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