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मुनिसुव्रतनाथस्य - श्रीमुनिसुव्रत | देशना-वचनं-देशना-वचनकी। स्वामोके ।
| स्तुमः-हम स्तुति करते हैं। अर्थ-सङ्कलना
संसारके प्राणियोंकी महामोहरूपी निद्रा उड़ाने के लिये प्रातःकाल जैसे श्रीमुनिसुव्रत स्वामीके देशना-वचनकी हम स्तुति करते हैं ॥२२॥
मूल
लुठन्तो नमतां मूनि, निर्मलीकार-कारणम् वारिप्लवा इव नमः, पान्तु पाद-नखांशवः ॥२३॥
शब्दार्थ
लुठन्तः-लुढ़कती हुई, लोटती हुई। वारि-प्लवाः-जलका प्रवाह । नमतां-नमस्कार करनेवालोंके । । वारि-जल। प्लव-प्रवाह । मनि-मस्तकपर ।
इव-तरह । निर्मलीकार - कारणम् - निर्मल | नमे:-श्रीनमिनाथ प्रभुके
करनेमें कारणभूत । पान्तु-रक्षा करें। निर्मलीकार-अनिर्मलको नि- | पाद-नखांशवः-चरणोंके नखकी मल करने की क्रिया। कारण- किरणें । हेतु।
पाद-चरण । अंशु-किरण । अर्थ-सङ्कलना
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नमस्कार करनेवालोंके मस्तकपर लोटतो हुई और जलके प्रवाहकी तरह निर्मल करने में कारणभूत, ऐसो श्रीनमिनाथ प्रभुके चरणोंके नखको किरणें तुम्हारा रक्षण करें ।। २३ ।।
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