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एकनाथः-एक मात्र स्वामी, । लक्ष्मीके लिये । अनन्यस्वामी।
अस्तु-हों। श्रिये-लक्ष्मीके लिये, आत्म- | वः-तुम्हें । अर्थ-सङ्कलना
अतिशयों की ऋद्धिसे युक्त और सुर, असुर तथा मनुष्यों के स्वामियोंके भी अनन्यस्वामी ऐसे श्रीकुन्थुनाथ भगवान् तुम्हें आत्मलक्ष्मीके लिये हों ।। १९ ।।
मूल
अरनाथस्तु भगवान्, चतुर्थार-नभो-रविः ।
चतुर्थ--पुरुषार्थ-श्री-विलासं वितनोतु वः ॥२०॥ शब्दार्थअरनाथः-श्रीअरनाथ ।
| चतुर्थ-पुरुषार्थ-श्री-विलासंतु-तो।
मोक्षरूपी लक्ष्मीका विलास । भगवान्-भगवान् । चतुर्थार-नभो-रविः-चतुर्थ आरा
चतुर्थ-पुरुषार्थ-मोक्ष । श्रीरूपी गगनमण्डल में सूर्यरूप ।। लक्ष्मी।
चतुर्थ-चौथा। अर-आरा ।। नभस्-आकाश, गगन-मण्डल ।
वितनोतु-प्रदान करें। रवि-सूर्य ।
| वः-तुम्हें । . अर्थ-सङ्कलना
चतुर्थ आरारूपी गगनमण्डलमें सूर्यरूप श्रीअरनाथ भगवान् तुम्हें मोक्ष-लक्ष्मीका विलास प्रदान करें ॥ २० ॥
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