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शब्दार्थ
करामलकवद् - हाथमें स्थित
आँवले के समान ।
कर - हाथ | आमलक-आँवला ।
३०७
विश्वं जगत्को ।
कलयन् - जानते हुए, देख रहे हैं । केवलश्रिया
केवलज्ञानकी
सम्पत्तिसे ।
केवल–केवलज्ञान। श्री-सम्पत्ति । वः - तुम्हारे लिये ।
अचिन्त्य - माहात्म्य - निधिःकल्पनातीत प्रभाव के भण्डार । अचिन्त्य - जिसका विचार न किया जा सके, ऐसा, कल्पनातीत | माहात्म्यप्रभाव । निधि-भण्डार |
सुविधिः - श्री सुविधिनाथ प्रभु । बोधये - वोधिके लिये, सम्यक्त्वकी
अर्थ- सङ्कलना
जो केवलज्ञानकी सम्पत्ति से सारे जगत्को हाथमें स्थित आँवले के समान देख रहे हैं तथा जो कल्पनातीत प्रभावके भण्डार हैं, वे श्रीसुविधिनाथ प्रभु तुम्हारे लिये सम्यक्त्वको प्राप्ति करानेवाले हों ॥। ११॥
मूल
शब्दार्थ
सत्त्वानां - प्राणियोंका, प्राणियों के लिये । परमानन्द - कन्दोदभेद - नवा
*
प्राप्ति करानेवाले । अस्तु - हों ।
सत्त्वानां - परमानन्द - कन्दो भेद - नवाम्बुदः । स्याद्वादामृत - निः स्यन्दी, शीतलः पातु वो जिनः ॥ १२ ॥
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म्बुदः - परमानन्दरूप कन्दको प्रकटित करनेके लिये नवीन मेघस्वरूप |
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