________________
३०२
शब्दार्थअर्हन्तं-पूजनीय
अम्लान-केवलादर्श-सङ्क्रान्तअजितं-श्रीअजितनाथ भगवानको। जगतं-जिनके केवलज्ञानरूपी विश्वकमलाकर - भास्करम्- दर्पणमें सारा जगत् प्रतिबि
जगत्के प्राणीरूप कमलोंके म्बित हुआ है, उनकी। समूहको विकसित करने के लिये
अम्लान-निर्मल । केवलादर्शसूर्य-स्वरूप ।
_केवलज्ञानरूपी दर्पण । विश्व-जगत्के प्राणी । कमलाकर-कमलोंका समूह ।
सङ क्रान्त-प्रतिबिम्बित हुआ है। भास्कर-सूर्य । स्तुवे-मैं स्तुति करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना
जगत्के प्राणीरूपी कमलोंके समूहको विकसित करनेके लिये सूर्य-स्वरूप तथा जिनके केवलज्ञानरूपी दर्पणमें सारा जगत् प्रतिबिम्बित हुआ है, ऐसे पूजनीय श्रीअजितनाथ भगवान्की मैं स्तुति करता हूँ ॥ ४॥ मूल
विश्व-भव्य-जनाराम-कुल्या-तुल्या जयन्ति ताः ।
देशना-समये वाचः, श्रीसम्भव-जगत्पतेः ॥ ५॥ शब्दार्थविश्व-भव्य-जनाराम - कुल्या- आराम-बगीचा। कुल्या
तल्याः-विश्वके भव्यजनरूपी ___नाली । तुल्या-समान । बगीचेको सींचनेके लिये नालीके | जयन्ति - जयको प्राप्त हो समान ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org