________________
२७०
अर्थ-सङ्कलना
जो जो पाप मनसे बाँधा हो, जो जो पाप वचन से कहा हो, जो जो पाप कायासे किया हो, तत्सम्बन्धी मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ।।१७।। सूत्र-परिचय
साधु तथा पोषधधारी श्रावक रात्रिके प्रथम प्रहरमें स्वाध्याय करनेके पश्चात् दूसरे प्रहरमें संथारा करनेके लिये जब गुरु महाराजकी आज्ञा माँगता है, तब यह सूत्र बोलता है । संथारा करनेकी पोरिसीमें यह सूत्र बोला जाता है, इसलिये इसको संथारा-पोरिसी कहते हैं ।
संथारा-पोरिसी
प्रश्न--संथारा-पोरिसीमें पहले क्या किया जाता है ? उत्तर-संथारा-पोरिसीमें प्रथम स्वाध्यायादि प्रवृत्तियोंका निषेध करके
नमस्कार किया जाता है। प्रश्न-यह नमस्कार किसको किया जाता है ? उत्तर-यह नमस्कार सामान्यतः सर्व क्षमाश्रमणों और विशेषतः गौत
मादि महामुनियोंको किया जाता है, क्योंकि निर्वाण-मार्गके
साधनमें इनका जीवन मार्गदर्शक है । प्रश्न-इसके बाद क्या किया जाता है ? उत्तर-बादमें नमस्कार-मन्त्र और सामायिक-सूत्र ( 'करेमि भंते' सूत्र)
का पाठ तीन बार बोला जाता है और ज्येष्ठ आचार्य अथवा गुरुको निवेदन किया जाता है कि 'बहु पडिपुन्ना पोरिसी' अर्थात् पोरिसी स्वाध्यायमें अच्छी तरह व्यतीत हुई है, इसलिये संथारेपर जानेकी आज्ञा दीजिये और उस समय संथारेकी सामान्य विधि भी कही जाती है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org