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२६९ शब्दार्थसव्वे जीवा-सब जीव ।
सव्व-सबको। कम्म-वस-कर्म-वश होकर ।
खमाविआ-खमाये हैं। चउदह-राज-चौदह रज्जुप्रमाण
मज्झ-मुझे। लोकमें।
वि-भी। भमंत-भ्रमण करते हैं। ते-उन।
तेह-वे। मे-मैंने।
खमंत-क्षमा करें। अर्थ-सङ्कलना
सब जीव कर्म-वश होकर चौदह रज्जुप्रमाण लोकमें भ्रमण करते हैं, उन सबको मैंने खमाया है, वे भी मुझे क्षमा करें ॥१६॥
मूल
१३ सर्व पापोंका मिथ्यादुष्कृत जं जं मणेण बद्धं, जं जं वायाइ भासिअंपावं ।
जं जं काएण कयं, मिच्छा मि दुक्कडं तस्स ॥१७॥ शब्दार्थजं जं-जो जो।
जं जं-जो जो। मणेण-मनसे ।
काएण-कायासे । बद्ध-बाँधा हो।
कयं-किया हो। जंज-जो जो।
मिच्छा-मिथ्या । वायाइ-वाणीसे, वचनसे । मि-मेरा। भासिअं-कहा हो।
दुक्कडं-दुष्कृत। पावं-पाप।
तस्स-तत्सम्बन्धी।
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