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________________ २६४ कोह-क्रोध । मिच्छत्त-सल्लं - मिथ्यात्वरूपी माणं-मान। शल्यको, मिथ्यात्व-शल्य । मायं-माया। च-और। वोसिरसु-छोड़ दे, त्याग करने लोहं-लोभ । योग्य हैं। पिज्ज-राग। इमाइं-ये। तहा-तथा। मुक्ख - मग्ग - संसग्ग - विग्घदोसं-द्वेष । भूआई-मोक्षमार्गकी प्राप्तिमें कलह-कलह । विघ्नभूत। मुक्ख-मग्ग-मोक्षमार्ग। अब्भक्खाणं-आक्षेप, अभ्याख्यान । संसग्ग-प्राप्ति । पेसुन्नं-चुगली, पैशुन्य। विग्घभूअ-विघ्नभूत, अन्तरायरूप। रइ-अरइ-समाउत्तं-रति और । दुग्गइ-निबंधणाई-दुर्गतिके कारअरतिसे युक्त, रति-अरति । । णरूप। पर-परिवायं-दूसरेको अवर्णवाद दुग्गइ-नरक, तिर्यञ्च आदि ( अयोग्यवचन) बोलनेको . गति । निबंधण-कारणरूप। क्रिया, पर-परिवाद । अट्ठारस-अठारह । माया-मोसं-माया-मृषावाद। पाव-ठाणाइं-पाप-स्थानक । अर्थ-सङ्कलना प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, रति-अरति, परपरिवाद, माया-मृषावाद और मिथ्यात्व-शल्य ये अठारह पाप-स्थानक मोक्ष-मार्गकी प्राप्ति में विघ्नभूत और दुर्गतिके कारण होनेसे त्याग करने योग्य हैं ( अतः मैं इनका त्याग करता हूँ ) ।। ८-९-१० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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