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कोह-क्रोध ।
मिच्छत्त-सल्लं - मिथ्यात्वरूपी माणं-मान।
शल्यको, मिथ्यात्व-शल्य । मायं-माया।
च-और।
वोसिरसु-छोड़ दे, त्याग करने लोहं-लोभ ।
योग्य हैं। पिज्ज-राग।
इमाइं-ये। तहा-तथा।
मुक्ख - मग्ग - संसग्ग - विग्घदोसं-द्वेष ।
भूआई-मोक्षमार्गकी प्राप्तिमें कलह-कलह ।
विघ्नभूत।
मुक्ख-मग्ग-मोक्षमार्ग। अब्भक्खाणं-आक्षेप, अभ्याख्यान ।
संसग्ग-प्राप्ति । पेसुन्नं-चुगली, पैशुन्य।
विग्घभूअ-विघ्नभूत, अन्तरायरूप। रइ-अरइ-समाउत्तं-रति और
। दुग्गइ-निबंधणाई-दुर्गतिके कारअरतिसे युक्त, रति-अरति । ।
णरूप। पर-परिवायं-दूसरेको अवर्णवाद
दुग्गइ-नरक, तिर्यञ्च आदि ( अयोग्यवचन) बोलनेको
. गति । निबंधण-कारणरूप। क्रिया, पर-परिवाद ।
अट्ठारस-अठारह । माया-मोसं-माया-मृषावाद। पाव-ठाणाइं-पाप-स्थानक ।
अर्थ-सङ्कलना
प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, रति-अरति, परपरिवाद, माया-मृषावाद और मिथ्यात्व-शल्य ये अठारह पाप-स्थानक मोक्ष-मार्गकी प्राप्ति में विघ्नभूत और दुर्गतिके कारण होनेसे त्याग करने योग्य हैं ( अतः मैं इनका त्याग करता हूँ ) ।। ८-९-१० ।।
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