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तिर्छा-लोक अर्थात् मनुष्य-लोकमें तीन हजार; दोसौ उनसठ ( ३२५९) शाश्वत चैत्योंका वर्णन आता है, जिनमें तीन लाख इकानवे हजार, तीनसौ बीस ( ३९१३२० ) जिनप्रतिमाएँ हैं, उन्हें मैं वन्दन करता हूँ॥९॥
इसके अतिरिक्त व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके निवासमें जो जो शाश्वत जिन-बिम्ब हैं, उन्हें भी मैं वन्दन करता हूँ। गुणोंकी श्रेणिसे परिपूर्ण चार शाश्वत जिन-बिम्बोंके शुभनाम-१ श्रीऋषभ, २ चन्द्रानन, ३ वारिषेण और ४ वर्द्धमान हैं ॥१०॥
संमेतशिखरपर बीस तीर्थङ्करोंकी प्रतिमाएं हैं, अष्टापदपर चौबीस तीर्थङ्करोंकी प्रतिमाएँ हैं, तथा शत्रुञ्जय, गिरनार और आबूपर भी भव्य जिन-मूर्तियाँ हैं, उन सबको मैं वन्दन करता हूँ। ११ ।।
तथा शङ्केश्वर, केशरियाजी आदिमें भी पृथक् पृथक् तीर्थङ्करोंकी प्रतिमाएँ हैं; एवं तारंगापर श्रीअजितनाथजीकी प्रतिमा है, उन सबको मैं वन्दन करता हूँ। इसी प्रकार अन्तरिक्षपार्श्वनाथ, जीरावला पार्श्वनाथ और स्तम्भनपार्श्वनाथके तीर्थ भी प्रसिद्ध हैं, उन सबको मैं वन्दन करता हूँ। १२ ।।
इसके उपरान्त भिन्न भिन्न ग्रामोंमें, नगरोंमें, पुरोंमें और पट्टन (पाटण )में गुणोंके गृहरूप जो जो जिनेश्वर प्रभुके चैत्य हों, उनको मैं वन्दन करता हूँ। तथा बीस विहरमाण जिन एवं आजतक हुए अनन्त सिद्धोंको मैं प्रतिदिन नमस्कार करता हूँ। १३ ।।
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