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और कायासे संयमका पालनकर वे श्रीनेमिनाथकी प्रथम साध्वी बनीं। श्रीनेमिनाथके छोटे भाई रथनेमि, उग्रसेन राजाको इन सौन्दर्यवती पुत्रीको देखकर मोहको प्राप्त हुए थे और साधुव्रतके अनन्तर भी डगमगाते रहे; परन्तु इन महासतीने सुन्दर शिक्षा देकर उनको चारित्रमें पुनः स्थिर कर दिया और अन्तमें सर्व कर्मोका क्षय करके मुक्तिको प्राप्त हुए।
१२ ऋषिदत्ता :-ये हरिषेण तापसकी पुत्री थीं और कनकरथ राजाके साथ इनका विवाह हुआ था। प्राक्तन कर्मोके कारण इन्हें अनेक प्रकारकी कठिनाइयोंसे गुजरना पड़ा; पर सभीसे पार हुई और अन्तिम समयमें संयम धारणकर सिद्धिपदको प्राप्त हुई।
१३ पद्मावती:-देखो राजर्षि करकण्डू (१८)।।
१४ अञ्जनासुन्दरी:-पवनञ्जयकी पत्नी और हनुमान्की माता। इनसे विवाह करके पतिने बरसोंतक छोड़ दिया था, इससे वियोगके दिन चल रहे थे। एक समय पति युद्ध में गये, वहाँ चक्रवाक-मिथुनकी विरहविह्वलता देखकर पत्नीकी स्मृति आयी। तब पत्नीसे मिलनेके हेतु गुप्त रोतिसे वापस आये, पर इस मिलनका परिणाम आपत्तिजनक निकला। इनके पतिके आनेकी बात किसीने जानी नहीं और अञ्जनाको जब गर्भवतीके रूपमें देखा तब इनपर कलङ्क लगाया । और ये पिताके घर भेज दी गयीं, किन्तु कलङ्कवाली पुत्रीको कौन रखे ? अन्तमें वनकी राह ली । वहाँ हनुमान् नामक तेजस्वी पुत्रको जन्म दिया। सती अञ्जना शीलव्रतमें तत्पर रहीं। पति वापस लौटनेपर सब बात जानकर बहुत पछताया, और पत्नीको खोजमें निकला एवं अत्यन्त परिश्रम व प्रयत्नसे मिलाप हुआ। कालान्तरमें दोनों चारित्रका पालनकर मुक्तिपदको प्राप्त हुए।
१५ श्रीदेवी:-ये श्रीधर राजाकी परम शीलवती स्त्री थीं । एकके बाद एक, इस प्रकार दो विद्याधरोंने अपहरण कर इन्हें शीलसे डिगानेका बहुत प्रयत्न किया, परन्तु पर्वतकी तरह ये निश्चल रहीं। अन्तमें चारित्रका पालन कर स्वर्गमें गयीं और वहाँसे मोक्षमें जायँगी ।
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