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________________ २३६ ७ सीता :- विदेहराज जनककी पुत्री और श्रीरामचन्द्रजीकी पत्नी । कथा प्रसिद्ध है । राजा माता-पितासे रूठकर धारण किया था और किया । उससे अभय ८ नन्दा ( सुनन्दा ) बेनातट नगरमें चले गये तब वहाँ गोपाल नाम धनपति नामके सेठकी पुत्री नन्दाके साथ विवाह कुमार नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो बुद्धिके लिए आज भी दृष्टान्तरूप है । नन्दाको पतिका वियोग कुछ वर्षोंतक सहन करना पड़ा, पर वह धर्मपालन और शील-रक्षणमें अडिग रही, इसलिये उसकी गणना सती स्त्रियों में होती है । ९ भद्रा :- शालिभद्रकी माता । जैन धर्मकी परम अनुरागिनी । - श्रेणिक '—— १० सुभद्रा : - इनके पिताका नाम जिनदास और माताका नाम तत्त्वमालिनी था । इनके ससुरालवाले बौद्ध होनेसे इन्हें अनेक प्रकारसे सताया करते थे, परन्तु ये अपने धर्म से लेशमात्र भी चलित नहीं हुईं । एकबार मुनिकी आँख में गिरे हुए तिनकेको निकालनेसे इनपर कलङ्क लगा, जिसको दूर करनेके लिये शासनदेवको आराधना की । दूसरे दिन नगर के सब द्वार बन्द हो गये । और आकाशवाणी हुई कि 'जब कोई सती स्त्री कच्चे सूत के तारसे छलनीद्वारा कुएमेंसे जल निकालकर छींटेगी, तब इस चम्पानगरीके द्वार खुलेंगे ।' यह असाधारण कार्य सती सुभद्राने कर दिखलाया, तबसे वे प्रातःस्मरणीया गिनी जाती हैं । अन्तमें दीक्षा लेकर मोक्षमें गयीं । Jain Education International ११ राजिमती : - विवाहकके लिये आया हुआ विवाहोत्सुक कन्त वापस लौट गया, निश्चित लग्न अधूरे रह गये, किन्तु एक बार मनसे पति के रूपमें वरण किये हुएके अतिरिक्त सती दूसरेकी आशा कैसे कर सकती है ? विवाहोत्सुक कन्त संसार से विरक्त होकर जब त्यागी-तपस्वी बने, तब धर्माराधनके लिये उनका शरण अङ्गीकृत किया । मन, वचन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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