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२ पंचिंदिय-सुत्तं [ गुरु-स्थापना-सूत्र ]
[ गाहा ] पंचिंदिय-संवरणो, तह नवविह-बंभचेर-गुत्ति-धरो। चउविह-कसाय-मुक्को, इअ अट्ठारसगुणेहिं संजुत्तो ॥१॥ पंच-महव्वय-जुत्तो, पंचविहायार-पालण-समत्थो । पंच-समिओ ति-गुत्तो, छत्तीसगुणो गुरू मज्झ ॥२॥ शब्दार्थपंचिदिय-संवरणो-पाँच इन्द्रियों- | चउविह-कसाय-मुक्को-क्रोधादि को वशमें रखनेवाला।
चार प्रकारकी कषायोंसे मुक्त । पंचिंदिय-पाँच इन्द्रियाँ। संवरणो- चउविह चार प्रकारके । कसायवशमें रखनेवाला।
आत्माको संसारमें परिभ्रमण तह-तथा ।
करानेवाली मलिन भावना ।
उनसेनवविह-बंभचेर-गुत्ति-धरो
मुक्को -मुक्त। नवविध ब्रह्मचर्यकी गुप्तिको
इअ-इस प्रकार। धारण करनेवाला। अट्ठारसगुणेहि-अठारह गुणोंसे । नवविह-नवविध, नव प्रकारकी। संजुत्तो-युक्त, सहित । बंभचेर - गुत्ति - ब्रह्मचर्यको | पंच-महव्वय-जुत्तो-पाँच महाव्रतोंगुप्ति, ब्रह्मचर्य-पालन सम्बन्धी से युक्त। नियम। धरो-धारण करने- पंच-पाँच । महन्वय-महावत, वाला।
साधुओंके व्रत । जुत्त-युक्त ।
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