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१८ राजर्ष करकण्डू : - चम्पानगरीके राजा दधिवाहनकी रानी पद्मावती के ये पुत्र थे । जब ये गर्भ में थे, तब राजा रानीका दोहद पूरने - के लिये रानी के साथ हाथीपर बैठकर फिरने निकला । इतने में हाथी उन्मत्त होकर जङ्गलकी ओर भागा। तब राजा तो जैसे-तैसे हाथी के ऊपरसे उतर गया और राज्य में वापस लौट आया, किन्तु रानी सूचनानुसार नहीं उतर सकी । हाथीने उसको घोर जङ्गल में छोड़ दिया तब रानी अत्यन्त प्रयाससे जङ्गलके बाहर आयी और साध्वियोंकी बस्ती में गयी । वहाँ साध्वियों का उपदेश सुनकर दीक्षा ग्रहण की। कुछ समय के बाद पुत्रका प्रसव हुआ उसको श्मशानमें छोड़ दिया । चाण्डालने उसको पालपोसकर बड़ा किया । शरीरमें खुजली ( कण्डू ) अधिक चलनेके कारण इनका नाम करकण्डू पड़ा । धीरे धीरे ये कञ्चनपुरके राजा हुए और दधिवाहनने इनका परिचय प्राप्तकर चम्पापुरीका राज्य भी इनको दिया । एक समय वृद्ध वृषभको देखकर इन्हें बोध हुआ और जाति-स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ । इस प्रसङ्गसे राज्य छोड़ दिया और शुद्ध चारित्रका पालनकर आत्म-कल्याण किया । ये पहले प्रत्येक बुद्ध गिने जाते हैं ।
१९-२० हल्ल - विहल्ल : - हल्ल और विहल्ल ये दोनों श्रेणिककी पत्नी चेल्लणारानीके पुत्र थे । श्रेणिकने अपना सेचनक हाथी इनको दिया था, इसलिये कोणिकने इनके साथ युद्ध किया था । इस युद्ध में वैशाली - पति चेटक महाराजाने हल्ल- विल्लकी सहायता की थी, किन्तु युद्धके मध्य में सेचनकके खाईमें गिरकर मर जानेसे इन्हें वैराग्य हो गया, अतः प्रभु महावीरसे दीक्षा ग्रहणकर आत्म-कल्याण किया ।
२१ सुदर्शन सेठ : - इनके पिताका नाम अर्हद्दास और माताका नाम अर्हद्दासी था । ये बारहव्रतधारी श्रावक थे । परदारा-विरमण-व्रतके विषय में इनकी कठिन परीक्षा हुई थी एक समय ये पोषधव्रत लेकर ध्यानमें खड़े थे, तब राज-रानी अभयाकी सूचनासे दासी इनको राजमहल में उठा ले गयी और इनको विचलित करनेके लिये अनेक उपाय किये,
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