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________________ २२१ प्रभु महावीरके मुखसे अपने पूर्वजन्मका वृत्तान्त सुनकर इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और विविध तप करके अपनी आत्माका कल्याण किया। आज भी 'कयवन्ना सेठका सौभाग्य हो' ऐसे शब्द नये वर्षकी बहीमें लिखे जाते हैं। . १५ सुकोशलमुनि :-ये अयोध्याके राजा कीर्तिधरके पुत्र थे। इनकी माता का नाम सहदेवी था। पहले कीर्तिधरने दीक्षा ली और बादमे उनका उपदेश सुनकर इन्होंने दीक्षा ली थी। इनकी माता सहदेवी पति और पत्रका वियोग असह्य होनेके कारण आतध्यान करती हई मरणको प्राप्त होकर, एक जङ्गलमें सिंहिनी हुई । एक बार दोनों राजर्षि उसी जङ्गलमें गये और कायोत्सर्ग ध्यानमें खड़े रहे, तब इस सिंहिनीने आकर सूकोशल मुनिपर आक्रमण किया और उनके शरीरको चीर डाला, परन्तु ये धर्मध्यानसे तनिक भी विचलित नहीं हुए। इस प्रकारकी अचल और प्रबल धर्मभावना होनेसे अन्तकृत् केवली हुए और मोक्षमें गये । १६ पुण्डरीक :-पिताने ज्येष्ठ पुत्र पुण्डरीकको राज्य सौंपकर संयम धारण किया, तब कनिष्टपुत्र कण्डरीकने उनके साथ दीक्षा ली, परन्तु उसका पालन न हो सकनेसे वह चारित्रभ्रष्ट होकर घर आया। पुण्डरीकने देखा कि छोटे भाई की लालसा राज्यासनमें है, अतः इन्होंने कुछ भी आनाकानी किये बिना राज्यासन उसको सौंप दिया और स्वयं दीक्षा लेकर निवृत्त हो गये। कण्डरीकको उसी रात्रिमें अत्याहारके कारण विषचिका हो गयी और मृत्युको प्राप्त हो सातवें नरकमें गया। जब कि पुण्डरीकमुनि भाव-चारित्रका पालन कर सर्वार्थसिद्ध विमानमें देवत्वको प्राप्त हुए। १७ केशी:-ये श्रीपार्श्वनाथ स्वामीको परम्पराके गणधर थे। प्रदेशी जैसे नास्तिक राजाको इन्होंने प्रतिबोध दिया था तथा श्रीगौतमस्वामीके साथ धर्मचर्चा की थी। अन्तमें प्रभु महावीरके पाँच महाव्रत स्वीकृतकर सिद्धिपदको प्राप्त हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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