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- ३ अभयकुमार :-ये श्रेणिक राजाके पुत्र थे। इनकी माताका नाम सुनन्दा था। बाल्यावस्थामें ही खाली कुएँ में गिरी हुई अँगूठीको अपने बुद्धि-चमत्कारसे ऊपर ले आये, जिससे प्रसन्न होकर श्रेणिक राजाने इनको मुख्य-मन्त्री बनाया। ये औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिको और पारिणामिकी-इन चारों बुद्धियोंके स्वामी थे। पिताके कार्य में इन्होंने बहुत सहायता की थी। अन्तमें प्रभु महावीरसे दीक्षा ले, उत्कृष्ट तपकर मोक्ष प्राप्त किया । आज भी व्यापारीवर्ग शारदा-पूजनके समय अपनी बहीमें 'अभयकुमारकी वृद्धि हो' यह वाक्य लिखकर इनका स्मरण करता है ।
४ ढढणकुमार :-ये श्रीकृष्ण वासुदेवकी ढंढणा नामक रानीके पुत्र थे। इन्होंने बाईसवें तीर्थङ्कर श्रीनेमिनाथसे दीक्षा ग्रहण की थी, परन्तु पूर्व-कर्मके उदयसे शुद्ध भिक्षा नहीं मिलती थी, इसलिये अभिग्रह किया कि 'स्वलब्धिसे भिक्षा मिले तब ही लेनी ।' एक समय भिक्षाके लिये ये द्वारिकामें फिरते थे, उस समय श्रीकृष्णने वाहन (रथ)से नीचे उतरकर भक्तिभावसे बन्दन किया। यह देखकर किसी श्रेष्ठिने उनको उत्तम मोदक वहोराये ( भिक्षामें दिये ); परन्तु 'यह आहार स्वलब्धिसे नहीं मिला,' ऐसा प्रभुके मुखसे जानकर, उसको कुम्हारकी शालामें परठवनेके हेतु चले। उस समय उत्तम भावना करनेसे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।
५ श्रीयक :-ये शकडाल मन्त्रीके पुत्र और स्थूलभद्र के छोटे भाई थे। पिताकी मृत्युके अनन्तर नन्दराजाका मन्त्रीपद इनको प्राप्त हुआ था । धर्मपर अतीव अनुराग होनेसे लगभग सौ जिनमन्दिर और करीब तीनसौ धर्मशालाएँ बनवाई थी तथा अन्य भी धर्मके अनेक कार्य किये थे । अन्तमें इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और पर्युषण-पर्वमें उपवासका आराधन करते हुए कालधर्मको प्राप्त हुए।
६ अणिका-पुत्र आचार्य :-उत्तर मथुरामें देवदत्त नामका एक वैश्य रहता था। वह धन कमानेके लिये दक्षिण-मथुरामें आया और
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