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________________ साथ रहते हैं, (९) वे अपायापगम नामक अतिशयसे युक्त होते हैं, अर्थात् वे जहाँ जहाँ विचरण करते हैं, वहाँसे अतिवृष्टि, अनावृष्टि (दुष्काल), रोग, महामारी आदि अपायों ( अनिष्टों )का नाश हो जाता है, (१०) वे ज्ञानातिशयवाले होते हैं, अतः समस्त विश्वका सम्पूर्णस्वरूप जानते हैं, (११) वे पूजातिशयवाले होते हैं, अतः बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती आदि बड़े-बड़े राजा तथा इन्द्रादिक भी उनकी पूजा करते हैं और (१२) वे वचनातिशयवाले होते हैं, अतः उनके कथनका अभिप्राय देव, मनुष्य और पशु (तिर्यञ्च ) भी समझ जाते हैं। प्रश्न-सिद्धका अर्थ क्या है । उत्तर-जिसने सर्वथा कर्मनाश द्वारा अपना शुद्ध-स्वरूप प्रकट किया है, ऐसी आत्मा। प्रश्न-सिद्ध भगवान् कैसे पहचाने जाते हैं ? उत्तर-सिद्ध भगवान् आठ गुणोंसे पहचाने जाते हैं:-(१) अनन्तज्ञान (२) अनन्तदर्शन, (३) अनन्त-अव्याबाध सुख, (४) अनन्तचारित्र, (५) अक्षय-स्थिति, (६) अरूपित्व, (७) अगुरुलघु (जिसमें उच्चता अथवा निम्नताका व्यवहार नहीं हो सके) तथा (८) अनन्तवीर्य । प्रश्न-आचार्य किसे कहते हैं ? उत्तर-जो साधु गच्छके अधिपति हों, आचारका भले प्रकारसे पालन करते हों तथा दूसरोंको आचारपालनका उपदेश करते हों, उनको आचार्य कहते हैं। वे पाँच इन्द्रियके विषयोंको जीतनेवाले होते हैं, ब्रह्मचर्यकी नव गुप्तियोंका पालनकरनेवाले होते हैं, चार प्रकारके कषायोंसे रहित होते हैं, पञ्चमहाव्रतका पालन करनेवाले होते हैं तथा पाँच समिति एवं तीन गुप्तियोंके पालन करनेवाले होते हैं। इस प्रकार छत्तीस गुणोंसे युक्त आचार्य पहचाने जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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