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शमन करनेवाले और (१६) दुष्ट ग्रह, भूत, पिशाच तथा शाकिनियोंद्वारा उत्पादित पीड़ाओंका अत्यन्त नाश करनेवाले ऐसे श्रीशान्तिनाथ को नमस्कार हो ॥५॥
मूल
यस्येति नाममन्त्र - प्रधान - वाक्योपयोग - कृततोषा । विजया कुरुते जनहितमिति च नुता नमत तं शान्तिम् ॥ ६ ॥
शब्दार्थ -
यस्य - जिसके ।
इति - ऐसे |
नाममन्त्र - प्रधान- वाक्योप योग - कृततोषा - नाममन्त्रवाले उत्तम अनुष्ठानोंसे तुष्ट की हुई ।
भगवान् के विशिष्ट नामवाले मन्त्रको ' नाममन्त्र' कहते हैं । वाक्योपयोग - विधि
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युक्त जप अथवा अनुष्ठान ।
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विजया - विजयादेवी । कुरुते - करती है । जनहितम् - लोगों का हित ।
इति - इससे ।
च - ही |
नुता - स्तुति की गयी है । नमत - नमस्कार करो । तं - उन ।
| शान्तिम् - श्री शान्तिनाथको ।
अर्थ-सङ्कलना
जिनसे नाममन्त्रावाले उत्तम अनुष्ठानोंसे तुष्ट की हुई विजयादेवी लोगोंका (ऋद्धि-सिद्धि प्रदानपूर्वक) हित करती है, उन श्रीशांतिनाथको ( हे मनुष्यों ! तुम ) नमस्कार करो और विजया ( -जया ) देवी कार्य करनेवाली है इससे उसकी भी प्रसङ्गानुसार यहाँ स्तुति की गयी है ||६||
प्र-१३
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