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________________ १९३ शमन करनेवाले और (१६) दुष्ट ग्रह, भूत, पिशाच तथा शाकिनियोंद्वारा उत्पादित पीड़ाओंका अत्यन्त नाश करनेवाले ऐसे श्रीशान्तिनाथ को नमस्कार हो ॥५॥ मूल यस्येति नाममन्त्र - प्रधान - वाक्योपयोग - कृततोषा । विजया कुरुते जनहितमिति च नुता नमत तं शान्तिम् ॥ ६ ॥ शब्दार्थ - यस्य - जिसके । इति - ऐसे | नाममन्त्र - प्रधान- वाक्योप योग - कृततोषा - नाममन्त्रवाले उत्तम अनुष्ठानोंसे तुष्ट की हुई । भगवान् के विशिष्ट नामवाले मन्त्रको ' नाममन्त्र' कहते हैं । वाक्योपयोग - विधि - युक्त जप अथवा अनुष्ठान । Jain Education International विजया - विजयादेवी । कुरुते - करती है । जनहितम् - लोगों का हित । इति - इससे । च - ही | नुता - स्तुति की गयी है । नमत - नमस्कार करो । तं - उन । | शान्तिम् - श्री शान्तिनाथको । अर्थ-सङ्कलना जिनसे नाममन्त्रावाले उत्तम अनुष्ठानोंसे तुष्ट की हुई विजयादेवी लोगोंका (ऋद्धि-सिद्धि प्रदानपूर्वक) हित करती है, उन श्रीशांतिनाथको ( हे मनुष्यों ! तुम ) नमस्कार करो और विजया ( -जया ) देवी कार्य करनेवाली है इससे उसकी भी प्रसङ्गानुसार यहाँ स्तुति की गयी है ||६|| प्र-१३ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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