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१८९ ६८ और अर्धपुष्करावर्त खण्डके ६८ मिलकर १७० विजय होते हैं । जिस समय प्रत्येक क्षेत्र में तीर्थङ्कर विद्यमान होते हैं उस समय उनकी उत्कृष्ट संख्या १७० की होती है। ऐसी घटना श्रीअजितनाथ प्रभुके वारेमें--समयमें हुई थी।
४२ शान्ति-स्तवः
[ 'लघु-शान्ति' ] सूल--
(मङ्गलादि)
[ गाहा ] शान्ति शान्ति-निशान्तं, शान्तं शान्ताशिवं नमस्कृत्य । स्तोतुः शान्ति--निमित्तं, मन्त्रपदैः शान्तये स्तौमि ॥१॥ शब्दार्थशान्ति-श्रीशान्तिनाथ भगवान्को। । स्तोतुः-स्तुति करनेवालेकी। शान्ति-निशान्तं--शान्तिके गृह शान्ति-निमित्तं-शान्तिके निसमान ।
__मित्त, शान्ति करने में निमित्तशान्तं-शान्तरससे युक्त, प्रशम- भूत ऐसे साधन (तन्त्र) का।
रस-निमग्न । . | मन्त्रपदैः-मन्त्रपदोंसे, मन्त्रभित शान्ताशिवं-जिनने अशिवको पदोंसे । शान्त किया है, अशिवका | शान्तये-शान्तिके लिये।। नाश करनेवाले।
स्तौमि-स्तवन करता हूँ, वर्णन नमस्कृत्य-नमस्कार करके । करता हूँ।
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