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________________ १८८ शब्दार्थ वरकनक-शङ्ख-विद्रुम-मर-- विशेष । विद्रुम-मूंगा । कत-घन - सन्निभं - श्रेष्ठ मरकत-नीलम । घन-मेघ । सुवर्ण, श्रेष्ठ शङ्ख, श्रेष्ठ विद्रुम, सन्निभ-जैसा। श्रेष्ठ नीलम और श्रेष्ठ मेघ विगत-मोहम्-जिनका मोह चला जैसे ( वर्णवाले )। ___ गया है वैसे, मोह रहित । वरकनक-श्रेष्ठ सुवर्ण, उत्तम । सप्ततिशतं-एकसौ सत्तर। सोना । शङ्ख-समुद्र में उत्पन्न जिनानां-जिनेश्वरोंको। होनेवाला दो इन्द्रियवाले सर्वामर-पूजितं-सर्व देवोंसे पूजित ( द्वीन्द्रिय ) प्राणीका कलेवर वन्दे-मैं वन्दना करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना श्रेष्ठ सुवर्ण, श्रेष्ठ शज, श्रेष्ठ मगा, श्रेष्ठ नीलम और श्रेष्ठ मेघ जैसे वर्णवाले, मोह-रहित और सर्व देवोंसे पूजित एकसौ सत्तर जिनेश्वरोंको मैं वन्दन करता हूँ ।।१।। सूत्र-परिचय. इस सूत्रसे उत्कृष्ट १७० जिनोंके लिये वन्दना की जाती है। तीर्थङ्करदेव कर्मभूमिमें ही उत्पन्न होते हैं, जिसके पृथक् पृथक् विभाग विजय कहलाते हैं। ऐसे एक-एक विजयमें एक समयमें एक ही तीर्थङ्कर हो सकते हैं। जम्बूद्वीपके महाविदेह क्षेत्रमें ३२ विजय हैं, भरत और ऐरावत में भी एक-एक विजय है, अर्थात् सब मिल कर ३४ विजय हैं। धातकीखण्ड, जम्बूद्वीपसे दुगुना है इसमें ६८ विजय हैं; और अर्ध-पुष्करावर्तखण्ड धातकीखण्ड जितना होनेसे उसमें भी ६८ विजय हैं । पुष्करावर्त्तका शेष आधा खण्ड मनुष्यक्षेत्रके बाहर होनेसे उसमें विजयकी गिनती नहीं है। इस प्रकार जम्बूद्वीपके ३४, धातकीखण्डके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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