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अभ्यास करना हो, शास्त्रका उपदेश देना हो, धार्मिक-क्रिया करनी हो, धार्मिक-उत्सव करना हो अथवा कोई भी शुभ-कार्य करना हो, तो प्रारम्भमें इसका स्मरण करना चाहिए। इतना ही नहीं सोते, जागते, भोजन करते, प्रवासके लिये प्रस्थान करते एवं मरण निकट आनेपर भी इसका शरण लेना चाहिये ।
इस सूत्रमें ६८ अक्षर हैं, ८ सम्पदाएँ हैं तथा ९ पद हैं, जिनकी गणना इस प्रकार है:
अक्षर
सम्पदा
पहली
नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्व-साहूणं एसो पंच-नमुक्कारो ... सव्व-पाव-प्पणासणो मंगलाणं च सवेसि
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दूसरी तीसरी चौथी पाँचवीं छठी
पहला दूसरा तीसरा चौथा पाँचवाँ छठा सातवाँ आठवाँ नौवाँ
सातवीं
आठवीं
पढम हवड मंगलं
पश्च-परमेष्ठी प्रश्न-परमेष्ठी किसे कहते हैं ? उत्तर-जो 'परमे' अर्थात् परमपदमें-ऊँचे स्थानमें 'ष्ठिन् ' अर्थात
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