SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ-सङ्कलना अरिहन्त भगवन्तको नमस्कार हो। सिद्ध भगवन्तको नमस्कार हो । आचार्य महाराजको नमस्कार हो । उपाध्याय महाराजको नमस्कार हो। ढाई द्वीपमें रहनेवाले सब साधुओंको नमस्कार हो । यह पञ्च-नमस्कार सर्व अशुभ-कर्मोंका विनाश करनेवाला तथा सर्व मङ्गलोंमें उत्कृष्ट मङ्गल है ।। १॥ सूत्र-परिचय इस सूत्रके द्वारा अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा साधु इन पञ्च-परमेष्ठीको नमस्कार किया जाता है, अत एव यह ‘पञ्च-परमेष्ठिनमस्कार' अथवा 'नमस्कार-मन्त्र के नामसे पहचाना जाता है। शास्त्रोंमें इस सूत्रका ‘पञ्च-मङ्गल' एवं 'पञ्च-मङ्गल-महा-श्रुतस्कन्ध' नामसे भी परिचय कराया है। नमनकी क्रियाको नमस्कार कहते हैं। यह क्रिया द्रव्यसे भी होती है और भावसे भी होती है, अतः नमस्कारके द्रव्य नमस्कार और भाव-नमस्कार ऐसे दो प्रकार होते हैं। मस्तक नमाना, हाथ जोड़ना, घुटने झुकाना आदि द्रव्य-नमस्कार कहलाता है और मनको विषय तथा कषायसे मुक्तकर उसमें नम्रताके भाव लाना, यह भाव-नमस्कार कहलाता है । द्रव्य-नमस्कार तथा भाव-नमस्कारसे नमस्कारकी क्रिया पूर्ण हुई मानी जाती है। नमस्कार-मन्त्रका स्मरण करनेसे सर्व अशुभ-कर्मोंका नाश होता है तथा सर्वश्रेष्ठ मङ्गल हुआ ऐसा माना जाता है, इसलिये शास्त्रका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy