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१८१ मोक्ष प्राप्त करनेवाले हैं और जिनका स्वरूप मिथ्यात्वियोंके लिये अगम्य है, ऐसे श्रीमहावीर प्रभुको मेरा नमस्कार हो ॥१॥
जिनकी उत्तम चरण-कमलकी श्रेणिको धारण करनेवाली ( देवनिर्मित ) विकसित ( सुवर्ण) कमलोंकी पङ्क्ति ने ( मानो ऐसा ) कहा कि-'समानके साथ इस प्रकार समागम होना, प्रशंसनीय है,' वे जिनेन्द्र मोक्षके लिये हों ।।२।। ___जो वाणीका समूह जिनेश्वरके मुखरूपी मेघसे प्रकटित होनेपर कषायके तापसे पीड़ित प्राणियोंको शान्ति प्रदान करता है और जो ज्येष्ठ मासमें हुई ( पहली ) वृष्टि जैसा है, वह मुझपर अनुग्रह करे ।।३।। सूत्र-परिचय
दैवसिक प्रतिक्रमणमें छ: आवश्यक पूर्ण होनेके पश्चात् मङ्गलस्तुतिके निमित्त यह सूत्र बोला जाता है। इसमें पहली स्तुति श्रीमहावीरस्वामीकी है, दूसरी स्तुति सामान्य जिनोंकी है और तीसरी स्तुति श्रीतीर्थङ्करके वाणीरूप श्रुतज्ञान की है। स्त्रियाँ इस स्तुति के स्थानपर 'संसार दावानल'की स्तुति बोलती हैं।
३९ प्राभातिक--स्तुतिः
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[ 'विशाल-लोचन-दलं'-सूत्र ]
___ [ अनुष्टुप् ] विशाल-लोचन-दलं, प्रोद्यद्-दन्तांशु-केसरम् । प्रातरिजिनेन्द्रस्य, मुख-पद्मं पुनातु वः ॥१॥
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