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________________ १६६ प्रतिक्रमण प्रश्न-प्रतिक्रमण क्या है ? उत्तर-एक प्रकारकी आवश्यक-क्रिया । प्रश्न-उसमें क्या किया जाता है ? उत्तर-आलोचना, निन्दा और गरे । प्रश्न-आलोचना किसे कहते हैं ? उत्तर-दोषों अथवा अतिचारोंका स्मरण करना, उसे आलोचना कहते हैं। प्रश्न-निन्दा किसे कहते हैं ? उत्तर-मैंने यह अनुचित किया अथवा मुझसे यह अनुचित हुआ, इस प्रकार आत्मसाक्षीसे कहना, यह निन्दा कहलाती है । प्रश्न-गर्दा किसे कहते है ? उत्तर-दोषों अथवा अतिचारोंको गुरुके समक्ष निवेदन करना, यह गर्दा कहलाती है। प्रश्न--प्रतिक्रमण शब्दका अर्थ क्या है ? उत्तर-इसके लिये शास्त्रकारोंद्वारा कथित गाथा सुनो स्वस्थानाद् यत् परस्थानं, प्रमादस्य वशं गतः। तत्रैव क्रमणं भूयः, प्रतिक्रमणमुच्यते ॥ आत्मा प्रमादवश अपने स्थानसे परस्थानमें गयी हो, वहाँसे वापस लौटना, वह प्रतिक्रमण कहाता है । तात्पर्य यह है कि आत्मा ज्ञान, दर्शन और चारित्रका भाव त्यागकर मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद एवं कषायमें पड़ो हो, वहाँसे वापस, ज्ञान, . दर्शन और चारित्रमें आ जाय, उसे प्रतिक्रमण कहते हैं । प्रश्न-प्रतिक्रमण कितने प्रकारके हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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