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________________ १५९ उत्तर-जो जिनवचन सुने उसे श्रावक कहते हैं । + प्रश्न-श्रावक जिनवचन किस प्रकार सुने ? उत्तर-जो जिनेश्वर भगवान् विद्यमान हों तो श्रावक उनके पास जाय और श्रद्धापूर्वक उनके वचन सुने, परन्तु वे विद्यमान न हों तो उनकी पाट--परम्परामें उतरे हुए आचार्य महाराजों, उपाध्याय महाराजों अथवा साधु--मुनिराजोंके समीप जाय और उनसे श्रद्धापूर्वक जिनवचन सुने। प्रश्न-श्रावक जिनवचन सुनकर क्या करे ? उत्तर-श्रावक जिनवचन सुनकर उनपर विचार करे, मनन करे और उनमेंसे जितना शक्य हो, उतना अपने जीवनमें उतारे। प्रश्न-उत्तम श्रावक किसे कहते हैं ? उत्तर-जिसे जिनेश्वर भगवान्के शासनमें सम्पूर्ण श्रद्धा हो, जो सुपात्रको निरन्तर दान देता हो, जो प्रतिदिन पुण्यके कार्य करता हो और जो सुसाधुओंकी सेवा करनेमें अपने जीवनको धन्य मानता हो, उसे उत्तम श्रावक कहते हैं । एतदर्थ नीचेका पद्य स्मरण रखने योग्य है : श्रद्धालुतां श्राति जिनेन्द्रशासने, धनानि पात्रेषु वपत्यनारतम् । करोति पुण्यानि सुसाधुसेवना दतोऽपि तं श्रावकमाहुरुत्तमाः ॥१॥ प्रश्न--श्रावकका धर्म कितने प्रकारका है ? उत्तर-श्रावकका धर्म दो प्रकारका है:--सामान्य श्रावक-धर्म और विशेष श्रावक-धर्म । + श्रावक शब्दको विशेष व्याख्याके लिये देखो-प्रबोधटीका भाग १ला, सूत्र १०-४ तथा प्रबोधटीका भा. २ रा, सूत्र ३२-४, गाथा ४६.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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