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पडिक्कमणं - - प्रतिक्रमण करना आवश्यक होता है । असद्दहणे- अश्रद्धा होनेसे ।
अ- और ।
१५७
अर्थ- सङ्कलना
निषेध किये हुए कृत्योंके करनेसे, करने योग्य कृत्यों के नहीं करनेसे, अश्रद्धा होनेसे और श्रीजिनेश्वरदेवके उपदेशसे विपरीत प्ररूपणा करने से प्रतिक्रमण करना आवश्यक होता है ॥ ४८ ॥
मूल
तहा -- इसी तनह । विवरीअ - परूवणाए - श्रीजिनेश्वरदेव के उपदेशसे विपरीत प्ररूपणा करनेसे ।
[ सिलोगो ]
खामि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे । मित्ती मे सव्वभ्रूए सु, वेरं मज्झ न केइ ||४९ ||
शब्दार्थ
खामेमि-- मैं क्षमा करता हूँ । सव्वजीवे -- सब जीवोंको ।
सव्वे - सब |
जीवा - जीव । खमंतु- क्षमा करें । मे - मुझे ।
मित्ती -- मैत्री |
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मे --मेरी ।
सव्व-भूएस--सर्व प्राणियोंके प्रति,
सब जीवोंके साथ ।
वेरं - वर |
मज्झ-मेरा ।
न--नहीं । hes-- किसी के साथ |
अर्थ- सङ्कलना
सब जीवोंको मैं क्षमा करता हूँ, सब जीव मुझे क्षमा करें, मेरी सब जीवों के साथ मैत्री (मित्रता) है। मेरा किसी के साथ वैर नहीं ॥ ४९॥
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