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१५६ अन्त करनेवाली ऐसो चौबीसों जिनेश्वरोंके मुखसे निकली हुई धर्म कथाओंके स्वाध्यायसे मेरे दिवस व्यतीत हों ।। ४६ ।। मूल--
मम मंगलमरिहंता, सिद्धा साहू सुअंच धम्मो अ ।
सम्मदिट्ठी देवा, दितु समाहिं च बोहिं च ॥४७॥ शब्दार्थमम-मुझे।
| अ-और। मंगलं-मंगलरूप हों।
सम्मद्दिट्ठी-देवा-सम्यग्दृष्टि देव । अरिहंता अरिहन्त, अर्हन्त । दितु-प्रदान करें। सिद्धा-सिद्ध ।
समाहि-समाधिको। सुअं-द्वादशांगीरूप श्रुत। च-और। च-और।
बोहिं-बोधिको। धम्मो-धर्म, चारित्रधर्म । । च-और। अर्थ-सङ्कलना___अर्हन्त, सिद्ध, साधु, द्वादशांगीरूप श्रुत और चारित्रधर्म मुझे मंगलरूप हों, तथा सम्यग्दृष्टि देव मुझे समाधि और बोधि प्रदान करें ।। ४७॥
पडिसिद्धाणं करणे, किच्चाणमकरणे अ पडिक्कमणं ।
असदहणे अ तहा, विवरीअ--परूवणाए अ॥४८॥ शब्दार्थपडिसिद्धाणं-निषेध किये हुए । किच्चाणं-करने योग्य कृत्यों के । कृत्योंके ।
अकरणे-नहीं करनेसे । करणे-करनेसे ।
अ-और ।
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