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उवभोग-एक बार उपयोगमें | बीयम्मि गुणव्वए-दूसरे गुणलेना। परीभोग-बारंबार उप- व्रतमें योगमें लेना।
निदे-मैं निन्दा करता हूँ। अर्थ-सङ्कलना
दूसरे गुणव्रतमें मदिरा (की विरति)में,मांस (की विरति) में, तथा फूल, फल और सुगन्धी पदार्थों एवं माला आदिके उपभोग-परिभोग करनेमें जो अतिचार लगे हों, उनकी मैं निन्दा करता हूँ।। २० ॥
मूल
सच्चित्ते पडिबद्धे, -दुप्पोलियं च आहारे । तुच्छोसहि-भक्खणया, पडिक्कमे देसि सव्वं ॥२१॥ शब्दार्थसच्चित्ते-सचित्त आहारके । अपोल - दुप्पोलियं - अपक्व भक्षणमें ।
ओषधिके भक्षणमें; दुष्पक्व सचित्त-सजीव, चैतन्यवाला।
आहारके भक्षणमें। पडिबद्ध -सचित्त-प्रतिबद्ध आहा- अपोल-नहीं पकी हुई। दुप्पोरके भक्षणमें ।
लिय-कुछ पकी हुई और
कुछ नहीं पकी हुई। जो वस्तु सामान्यतया निर्जीव हो चुकी हो किन्तु उसका च-और । कोई भाग सचित्तके साथ
आहार-आहारके विषयों, आहाजुड़ा हुआ हो, वह सचित्त
। रके भक्षणमें। प्रतिबद्ध कहाता है। जैसे कि वृक्षका गोंद, बीज | तुच्छोसहि - भक्खणया - तुच्छ सहित पका हुआ फल । । ओषधिके भक्षणमें ।
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