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है। वह जब ग्लानि-रहित और आजीविकाके हेतु विना होता हो, तब उसे तपाचार जानना ॥५॥
अणसणमूणोअरिआ, वित्ती-संखेवणं रस-चाओ। काय-किलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥६॥ शब्दार्थअणसणमूणोअरिआ-अनशन संलोणया-शरीरादिकका सङ्गो__ और ऊनोदरिका-ऊनोदरता। पन, संलोनता। वित्ती-संखेवणं-वृत्ति संक्षेप। । य-और । रस-च्चाओ-रस-त्याग। बज्झो-बाह्य । काय - किलेसो - कष्ट - सहन । तवो-तप ।
करना-तितिक्षा, काय-क्लेश। । होइ-होता है, है । अर्थ-सङ्कलना
(१) अनशन, (२) ऊनोदरता, (३) वृत्ति-संक्षेप, (४) रसत्याग, (५) काय-क्लेश और (६) संलीनता ये बाह्य तप हैं ।।६।।
पायच्छित्तं विणओ, वेयावचं तहेव सज्झाओ। झाणं उस्सग्गो वि अ, अभितरओ तवो होई ॥७॥ शब्दार्थपायच्छित्तं-प्रायश्चित
उस्सग्गो-त्याग। विणओ-विनय ।
वि अ-और फिर। वेयावच्चं-वैयावृत्त्य ( शुश्रूषा )।
अभितरओ-अभ्यन्तर। तहेव-वैसे ही। सज्झाओ-स्वाध्याय।
तवो-तप। झाणं-ध्यान।
होइ-होता है, हैं।
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