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उत्तर-संसारका पार प्राप्त किये हुए। जिनको नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य
या देवगतिमेंसे एक भी गतिमें जाना नहीं पड़े वे संसारका पार
प्राप्त किये हुए-पारङ्गत कहाते हैं । प्रश्न--परम्परागत अर्थात् ? उत्तर-परम्परासे मोक्ष प्राप्त किये हुए। जिनकी अनादिकालसे मोक्षमें
जानेकी परम्परा चालू है, अर्थात् प्रत्येक सिद्ध भगवन्त परम्परासे
मोक्षमें जाते हैं। प्रश्न-सिद्ध भगवन्त लोकके अग्रभागपर किसलिये विराजते हैं ? उत्तर-आत्माकी मूल गति सीधी रेखासे ऊपर जानेकी है, इसलिए सर्व
कर्मोंका नाश होनेपर वह सीधी रेखासे ऊपर गति करती है और जहाँ लोकका अग्रभाग आये, वहाँ जाकर रुकती है। लोकके अग्रभागको सिद्ध शिला कहते हैं, क्योंकि सिद्ध बने हुए सभी जीव वहाँ स्थिर होते हैं।
प्रश्न-लोक किसे कहते हैं ? उत्तर-विश्व, ब्रह्माण्ड अथवा जगत्को लोक कहते हैं। वह अनन्त
आकाशके एक भागमें आया है। चेतन तथा जड़ पदार्थोकी गति और स्थिरता उसमें ही होती है। जिस आकाशमें लोक न हो, उसको अलोक कहते हैं । अलोकमें कोई आत्मा अथवा जड़ पदार्थ नहीं जा सकता, क्योंकि ऐसा करनेके लिए जिन तत्त्वोंकी सहायता चाहिए, वे वहाँ नहीं हैं।
प्रश्न--सिद्ध भगवन्त कितने होंगे ? उत्तर- अनन्त । प्रश्न-वे सब आत्माएँ एक ही स्थान पर कैसे रहती होंगी ?
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