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___ अर्थ-अधर्म में यदि मन बार बार प्रवृत्त होता है, रोकने पर बला तू प्रवृत्त होता है तो महान् दुःख की सम्भावना समझनी चाहिए । साधकको सचेत होकर इस प्रकार अशुभ में जाते हुए मन को शुभभाव में धारण करना चाहिए।
धर्मे यस्य मनो वश्यं वश्यं तस्य जगत्त्रयम् । सेवापरवशाः देवाः भवेयुस्तद्भवेऽप्यहो ॥ २१ ॥
अन्वय-अहो यस्य मनः धर्मे वश्यं तस्य जगत् त्रयं वश्यं । तद् भवे अपि देवाः सेवापरवशाः भवेयुः ।। २१ ॥
अर्थ-जिसका मन धर्म में लीन है तीनों ही लोक उसके वशीभूत हैं। यही लोक में भी देवता उसकी सेवा में तत्पर रहते हैं।
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॥ इति सप्तमोऽध्यायः ॥
सप्तमोऽध्यायः
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