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रागसंवर्धनं भूरि विकृत्यादि विषादिकम् । द्वेषकुन्मोहकृन्मयं नाश्नीयाद् ज्ञानवान् मुनिः ॥ १२ ॥
अन्वय-भूरि विकृत्यादि विषादिकम् रागसंवर्धनं मत्वा ज्ञानवान् मुनिः (द्वेषकृत् मोहकृत् ) मद्यं न अश्नीयात् ॥ १२॥
अर्थ-ज्ञानवान् मुनि मद्यादि अभक्ष्य वस्तुओंको विकृतिकारक आदि विषमय राग बढ़ाने वाली वस्तु समझ कर उसका प्रयोग नहीं करे।
यथान्यचेतसो वृत्ते निाय लग्नमीक्ष्यते । चन्द्रवरूपमत्रापि तथा स्वमनसोऽप्यहो ॥ १३ ॥
अन्वय-यथा अन्यचेतसः वृत्तेः ज्ञानाय लग्नं ईक्ष्यते। तथा अत्रापि स्वमनसः (ज्ञानाय) चन्द्रस्वरूपं ( ईक्ष्यते) ॥ १३ ।।
अर्थ-जिस प्रकार अन्य लोगों के विषय में जानकारी के लिए लग्न कुण्डली देखी जाती है वैसे ही आध्यात्म विद्या में भी अपने मन की जानकारी के लिए व्यक्ति के प्रकट स्वरूप को देखा जाता है। ज्योतिष में चन्द्रमा मन का स्वामी होता है एवं वह अच्छे लग्न में स्थित हो तो उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति अच्छी होती है। लग्न में चन्द्रमा जीव रूप माना गया है लग्न शरीर है तो चन्द्रमा प्राण है । लग्नो देहः प्राणश्चन्द्रो
चन्द्रराशिर्मनश्चक्रं तिथयो वत्सरास्तथा। तत्रिशांशाद् द्वादशांशान्मासापक्षस्तु होरया ॥ १४ ॥
अन्वय-चन्द्रराशिः मनश्चक्रं तिथयः वत्सराः तथा तत् त्रिशांशात् द्वादशांशात् मासा पक्षः तु होरया ॥ १४ ॥
अर्थ-चन्द्रमा की राशि मन का घर मानी जाती है। जन्मपत्री के बारह कोठों में से चन्द्रमा जिस घर में होगा उसी के बलाबल पर मन की
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अर्हद्गीता
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