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अन्वय-यावत् तत्त्वं न विन्दति (तावत् ) पठनात् ज्ञानी न उच्यते। रामनाम जल्पन् तैरश्च्यः शुकः न तदर्थवित् (एव तरति) ॥ १९ ॥
अर्थ-जब तक तत्त्वज्ञान प्राप्त नहीं होता है तब तक मात्र पढ़ने से ही मनुष्य ज्ञानी नहीं कहा जाता है। बिना ज्ञान के उसकी मुक्ति भी नहीं होती है। राम नाम का मात्र पारायण करने वाला पक्षी तोता उसके अर्थ का जानने वाला नहीं होता है। संसार सागर से पार तो रामनाम के अर्थ को जानने वाला ही होता है।
तृष्णां कषायविषयविषयां यस्त्यजेजनः । ज्ञानी धर्मी विवेकी स मूर्तो धूर्तस्ततोऽपरः ॥२०॥
अन्वय-यः जनः कषायविषयविषयां तृष्णां त्यजेत् सः शानी धर्मी विवेकी मूर्तः ततः अपरः धूर्तः ॥ २० ॥
अर्थ-जो मनुष्य कषाय विषय वाली तृष्णा को छोड़ देता है वह साक्षात् ज्ञानी धर्मी एवं विवेकी है परन्तु जो तृष्णावान् है एवं विषय कषायों से युक्त है वह साक्षात् धूर्त है।
आजीविकायै शास्त्रज्ञाः केपि वैराग्यशालिनः । सम्यगज्ञानधना नैते योऽनिच्छुः पूज्य एव सः॥२१॥
अन्वय-केऽपि शास्त्रज्ञाः आजीविकायै वैराग्यशालिनः । एते न सम्यग्-शान-धनाः यः अनिच्छुः सः एव पूज्यः ॥२१॥
___ अर्थ-कुछ शास्त्रज्ञ मात्र आजीविका के लिए ही वैराग्य के पथ पर चलते हैं। ये लोग सम्यग् ज्ञानी नहीं होते। संसार में वही पूज्य हैं जो निष्काम है, अनासक्त हैं।
॥ इति द्वितीयोऽध्यायः ॥
ईद्गीता
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