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________________ ! [ गौतमस्वामी ने भगवान महावीर से पूछा है कि हे भगवान् अनादि सिद्ध अरिहंत पद की धारक आत्मज्योति को कैसे प्रकट किया जाय ? श्री भगवान ने धीर गम्भीर वाणी में उत्तर दिया कि आत्मा का लक्षण ज्ञान है, इसी ज्ञान के बल पर आत्मा मोहरूप अज्ञानान्धकार से मुक्त होती है । यही ज्ञान आत्मज्योति का प्रकाशक है इसे केवलज्ञान कहते हैं । ज्ञानाभ्यास में सदगुरु के उपदेशों का श्रवण एवं मनन बहुत सहायक होते हैं । जगत में सर्वप्रथम लोग अपने बालकों को विद्याभ्यास करवाते हैं । विद्या के बल पर ही संसार में हेय एवं उपादेय स्वरूपा विवेकी दृष्टि उत्पन्न होती है । शास्त्रपाठी नहीं किंतु मोहसे मुक्त होने वाला ही ज्ञानी है अन्य धूर्त हैं । इस दुर्लभ मनुष्य जीवन में सद्ज्ञान का बड़ा महत्त्व है । इस सद्ज्ञान में सर्वोत्तम है केवलज्ञान | इसी केवलज्ञान से आत्मा सर्वज्ञ एवं सम्यक्दृष्टि होती है। इसे आत्मज्योति का प्रकाश कहते हैं । ] अध्याय दूसरा अध्याय दूसरा शाश्वत आत्मज्योति Jain Education International For Private & Personal Use Only २५ www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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