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________________ शासन का प्राण है क्योंकि यह सरस्वती है, यानि रेफेण सहितं सर, एवं स्व का अर्थ है, अहं रेफ के साथ अहं यानि अहं । अहं एवं अर्हत् एक ही है। इसमें सम्बन्ध के अर्थ में ई प्रत्यय लगा है अर्थात् यह अर्हद्वती है, आहती है। यह आहती यानि योग्य है, सर्व समर्था है। ऐसी चन्द्रकिरणों के समान शीतलता, शान्ति एवं सूर्य किरणों के समान तुष्टि पुष्टि दाता सरस्वती जगत के कल्याण के लिए हो। सरस्वती ज्ञान की प्रतीक देवता है। ज्ञान से ही संसार की मुक्ति सम्भव है। मुक्ति ही प्राणी मात्र का शाश्वत श्रेय है अतः मुक्ति की कामना से ही आर्हती अर्थात् पूजनीया, सर्वसमर्था, जैन शासन से सम्बन्धित सरस्वती केवल मेरे लिए ही नहीं परन्तु समग्र संसार के कल्याण के लिए हो । यहाँ विश्वकल्याण की करुणात्मिका भावना दिखाई देती है। छन्द-अनुष्टुप् । यस्यां नैकान्तजडता नोष्मता न तमोलवः । निर्दोषां सुप्रकाशाङ्गी स्तुमस्तामाहतीं गिरम् ॥ २॥ अन्वय-यस्यां न एकान्त जडता न ऊष्मता न तमोलवः तां निर्दोषां सुप्रकाशाङ्गी आर्हतीं गिरम् स्तुमः ॥ २॥ अर्थ-जिस सरस्वतीदेवी में केवल जड़ता नहीं, उप्मा नहीं, किंचित मात्र तमोगुण नहीं, वह निर्दोष स्वप्रकाशित आहेती वाणी की हम स्तुति करते हैं। विवेचन--सरस्वती को पूर्व में सूर्य-चन्द्र की प्रभा की तरह कहा गया है पर इस श्लोक में सूर्य-चन्द्र की प्रभा से सरस्वती या अर्हद्वाणी को श्रेष्ठ बताया गया है। चन्द्रमा की प्रभा में जड़ता एवं सूर्य की प्रभा में उष्मा होती है। पुनः चन्द्रमा एवं सूर्य की प्रभा तो केवल प्रकाश करने वाली है पर यह तो सुप्रकाश करने वाली है। चन्द्रमा में जाड्य है तो सूर्य में उष्मा अर्थात् दोनों में तमोगुण है पर इस अर्हद् भगवान की वाणी स्वरूपा सरस्वती में तमोगुण का लेश भी नहीं है। चन्द्रमा की प्रभा विरही जन को सन्ताप देनेवाली है और सूर्य तपाने वाला है अर्थात् उनकी प्रभा दोष पूर्ण है पर यह तो निर्दोष है। परमज्योति पंचविंशिका में पू० यशोविजयजी महाराज ने ऐसा ही वर्णन आहती गिरा का किया है।। सरस्वती में एकान्तिकता नहीं है, वह अनेकान्तवाद व स्यावाद का पोषण करने वाली है। उसमें उष्मा अर्थात् क्रोध एवं विवाद का मूल कदाग्रह नहीं है। वह शीतलता से युक्त सतोगुणमयी है, तमोगुण का तो लेश भी उसमें नहीं है क्योंकि श्री अहद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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