________________ अर्थ-अर्हत् पद में त् व्यञ्जन को हटाने पर भी यह अह अव्यय रूप है। इस सिद्धवाचक अहं पद का ध्यान करते हुए निरञ्जन शिव स्वरूप की प्राप्ति होती है। अः सूर्यः स उना युक्तः प्रकाशेन मकारके / - महावीरे शिधावस्था-मोंकारे बिन्दुना नमेत् // 20 // अन्वय-अः सूर्यः स प्रकाशेन उना युक्तः मकारके महावीरे शिवावस्थां ओंकारे बिन्दुना नमेत् // 20 // अर्थ-अ सूर्य है वह सूर्य उ अर्थात् प्रकाश से युक्त है। इसका मकार महावीर रूप है। ऐसे बिन्दुसमेत ओंकार में मुक्तावस्था रूप सिद्धावस्था को प्रणाम करना चाहिए। अत्युकारे मकारे च त्रिपदी या व्यवस्थिता / तन्मयस्त्रिजगद्व्यापी ॐकारः परमेश्वरः // 21 // अन्वय-अति उकारे मकारे च या त्रिपदी व्यवस्थिता तन्मयः त्रिजगद्व्यापी ॐकार परमेश्वरः // 21 // अर्थ-अकार उकार व मकार में जो यह त्रिपदी (ब्रह्मा, विष्णु, महेश या उत्पाद ध्रौव्य व्यय रूप) क्रम बद्ध रूप से व्यवस्थित है उनसे युक्त त्रिजगद्व्यापी यह ॐकार परमेश्वर रूप है। // इति श्री अर्हद्गीतायां पञ्चविंशोऽध्यायः // 234 अहंद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org