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________________ द्वाविंशतितमोऽध्यायः श्री गौतम उवाच ऐन्दवी निर्मला कान्तिः शान्तिभृत्परमेश्वरे । सिद्धे पूर्णतया भाति चिदानन्दाभिनन्दिनी ॥ १॥ अन्वय-चिदानन्दाभिनन्दिनी ऐन्दवी निर्मला कान्तिः शान्तिभृत् सिद्धे परमेश्वरे पूर्णतया भाति ॥ १ ॥ अर्थ-श्री गौतमस्वामी ने भगवान से कहा-चिदानन्द स्वरूप को आनन्दित करने वाली आत्मा की निर्मल कान्ति शान्त और सिद्ध परमेश्वर में पूर्ण रूप से प्रकाशित होती है। ऐक्ये प्रतिष्ठिते तस्मिन् एको हि परमेश्वरः। आत्मनः परमैश्वर्ये-ऽनैक्यं तद् घटते कथम् ॥ २ ॥ अन्वय-तस्मिन् ऐक्ये प्रतिष्ठिते सति परमेश्वर एकः हि (एव) एवं सति आत्मनः परमेश्वर्ये तद् अनैक्यं कथं घटते ॥२॥ अर्थ-उस आत्मा में एकत्व की सिद्धि होने पर यह निश्चय होता है कि परमात्मा एक ही है परन्तु जो आत्मा परम ऐश्वर्यशाली है उसमें अनेकत्व कैसे घट सकता है ? __ श्री भगवानुवाच लोकालोकात्मकं वस्तु सद्रूपमेकमेव तत् । तच्छक्तिश्चेतना मुख्या ताद्रप्यात्तदनेकता ॥३॥ अन्वय-सद्पं वस्तु लोकालोकात्मकं अस्ति तत् एकं एव। तत् शक्तिः चेतना मुख्या ताद्रूप्यात् तदनेकता ॥३॥ द्वाविंशतितमोऽध्यायाः २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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