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________________ अर्थ- संसार में श्री विष्णु तथा राम प्रभृति पुरुषोत्तम हुए हैं इस पुरुषोत्तमत्व की प्राप्ति के लिए धर्म अर्थ काम तथा मोक्ष ये चार पुरुषार्थ कहे गए हैं। नरान्नारायणोत्पत्तिः शाब्दिकैरपि गीयते । पौरुषं फलमित्येवं नृजन्मोत्तम मीरितम् ॥ ४ ॥ अन्वय- शाब्दिकैः अपि नरात् नारायणोत्पत्तिः गीयते । नृ जन्मोत्तमं पौरूषफलं इति एवं ईरितम् ॥ ४ ॥ अर्थ-संसार में नर से नारायण की उत्पत्ति तो पंडित भी कहते हैं । यह भी कहते हैं कि मनुष्य जन्म में पुरुषार्थ का फल सर्वोत्तम होता है । तत्रापि पुरूषो ज्येष्ठः श्रेष्ठः सर्वगुणाश्रयः । यज्जन्मनि भवेद्धर्षो भिक्षूणां भूभुजां समः ॥ ५ ॥ अन्वय-तत्रापि पुरुषो ज्येष्ठः श्रेष्ठः सर्वगुणाश्रयः यत् जन्मनि भिक्षूणां भूभुजां सम हर्षः भवित् ॥ ५ ॥ अर्थ - उस मनुष्य जन्म में भी पुरुष जन्म श्रेष्ठ और सभी गुणों की खान है । इस जन्म की प्राप्ति पर गरीबों के घर भी राजाओं के समान हर्ष होता है । अर्थात् पुत्र जन्म से राजाओं तथा भिक्षुओं के घर समान आनन्द होता है । पुरुषेष्वपि यो धर्मरसिकः स्यात्कषायजित् । स एव देवदेवोऽर्च्यः स्तोतव्यः काव्यकोटिभिः ॥ ६ ॥ अन्वय- पुरुषेषु अपि यः धर्मरसिकः कषायजित् स्यात् स एव देवदेवः अर्यः काव्यकोटिभिः स्तोतव्यः ॥ ६ ॥ अर्थ - पुरुषों में भी जो धर्म में रूचि रखता है एवं कषायों को जीत लेता है वह देवों का देव (देवाधिदेव ) पूजनीय है एवं करोड़ों काव्यों से स्तुति करने योग्य है। १८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only अर्हद्गीता www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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