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________________ एकोनविंशोऽध्यायः श्री गौतम उवाच ऐश्वर्यशाली परम-स्त्वं तुभ्यं सततं नमः । भगवन् वद मे येन भवेत्तत्त्वप्रकाशनम् ॥ १ ॥ अन्वय-भगवन् त्वं ऐश्वर्यशाली परमः तुभ्यं सततं नमः। मे वद येन तत्त्वप्रकाशनं भवेत् ॥ १ ॥ अर्थ-श्री गौतम स्वामी ने भगवान से कहा कि हे भगवान आप परमेश्वर है मैं आपको नमस्कार करता हूँ मुझे वह बात बताइए जिससे तत्त्व का प्रकाशन हो। श्री भगवानुवाच चिदानन्दमयं ज्योति-स्तत्त्वं स्पष्टं तपोबलात् । जगत्प्रकाशकं मिथ्यामोहध्वान्तविनाशकम् ॥ २ ॥ अन्वय-चिदानन्दमयं ज्योतिः तत्त्वं तपोबलात् स्पष्टं जगत्प्रकाशकं मिथ्यामोहध्वान्त विनाशकम् ॥ २॥ . अर्थ-श्री भगवान ने कहा कि शाश्वत आनन्दमय जो आत्म प्रकाश है वही संसार में तत्त्व है इस आत्म प्रकाश को तपोबल से प्रत्यक्ष किया जा सकता है। यह आत्म प्रकाश संसार को प्रकाशित करने वाला है, मिथ्यात्व एवं मोह के अन्धकार को नष्ट करने वाला है। यथाग्नितापात् पूपादौ सिद्धिः कणेऽर्कतो यतः । तथाङ्गिनस्तपोयोगात् सिद्धिः शुद्धिः स्वरूपभाक् ॥ ३॥ अन्वय-यथा अग्नि तापात् पूपादौ सिद्धि कर्णे अर्कतः यतः तथा तपोयोगात् अंगिनः स्वरूपभाक् सिद्धिः शुद्धिः ॥ ३॥ अईदूगीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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