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अन्वय-एतदर्थ आर्तरौद्रे ध्याने वार्ये धर्मोज्वले खलु धार्य जिनैः पंचधा यमाः नियमाः प्रोक्ताः ॥६॥
अर्थ-इसीलिए आर्त रौद्र आदि वर्जित ध्यान नहीं करने हेतु तथा धर्मध्यान और शुक्लध्यान के धारण करने हेतु जिनेश्वर भगवन्तों ने पांच प्रकार के यम नियमादि आचरण बताए हैं। क्योंकि यम नियम धारण करने से शुभ ध्यान की योग्यता प्राप्त होती है।
द्रव्यक्षेत्रकालभावा पेक्षया बहुधा स्थितिः । आचाराणां दृश्यतेऽसौ न वादस्तत्र सादरः ॥ ७॥
अन्वय-द्रव्यक्षेत्रकालभावापेक्षया आचाराणां असौ बहुधा स्थितिः दृश्यते तत्र सादरः वादः न ॥ ७॥
____ अर्थ-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से आचारों के जो ये विभिन्न प्रकार दिखाई देते हैं उनका आदर करना चाहिए उनके विषय में विवाद नहीं।
विवेचन-व्यक्ति के कल्याण के लिये अनेक अपेक्षाओं से चिंतन करके धर्म आचारोंका स्वरूप दिखाया है। इसलिये आचारभेद को विवाद का कारण न होने दे। सापेक्षद्रष्टि से वह आदरणीय है क्योंकि विवाद से धर्मचिन्तन में बाधा पहुंचती है एवं लाभ नही होता है।
रागद्वेक्षये यस्माद्भवेत्कैवल्यमुज्ज्वलम् । सैप प्रमाणमाचार-स्तारकत्वाद्भवाम्बुधौ ॥ ८ ॥
अन्वय-यस्मात् रागद्वेष क्षये उज्जलं कैवल्यं भवेत् भवाम्बुधौ तारकत्वात् सैष आचारः प्रमाणः ॥ ८॥
अर्थ-जिससे रागद्वेष के नष्ट होने पर उज्ज्वल कैवल्य की प्राप्ति होती है। संसार सागर में तारणहार होने से वही आचार प्रमाणभूत है अर्थात् आचरणीय है। १७०
अहंद्गीता
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