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अर्थ-मोक्ष का प्रधान कारण ज्ञान है क्रिया नहीं। ज्ञान से समता रस की सिद्धि होने पर कौन अन्य प्रकार से सिद्धि चाहेगा ? अर्थात् अन्य प्रपंच में नहीं पड़ेगा।
ऋते ज्ञानान्न मुक्तिःस्यात् क्रियाक्लेशे महत्यपि । तद्ज्ञानं मनसः शुद्धया बुद्धया वृद्धयाभिजायते ॥ १८ ॥
अन्वय-महति अपि क्रियाक्लेशे ज्ञानात् ऋते मुक्तिः न स्यात् तद्द्वानं मनसः शुद्धया बुद्धया वृद्धयाभिजायते ॥ १८ ॥
अर्थ-बड़ी से बड़ी बाह्य आनुष्ठानिक क्रिया करने पर भी ज्ञान के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। यह ज्ञान मन की क्रमशः आरोहण करने वाली शुद्ध बुद्धि से उत्पन्न होता है।
अनित्याशरणत्वादि लोकान्तपरिभावनैः । मनोऽति निर्मलं धारं सत्प्रकाशाय जायते ॥ १९ ॥
अन्वय-अनित्याशरणत्वादि लोकान्तपरिभावनैः अति निर्मलं धारं मनः सत्प्रकाशाय जायते ॥१९॥
अर्थ-अनित्य, अशरण आदि संसार का अन्त करने वाली बारह भावनाओं के द्वारा निर्मल एवं ध्याननिष्ठ मन सत् तत्त्व का प्रकाशन करता है।
तत्वचिन्तनया शास्त्रा-नुगामिन्या मनः शिवे । आत्मन्येव निबध्नाति योगी नेन्द्रियगोचरे ॥२०॥
अन्वय-योगी शास्त्रानुगामिन्या तत्त्वचिन्तनया मनः शिवे आत्मनि एव निबध्नाति न इन्द्रिय गोचरे ॥२०॥
अर्थ-योगी शास्त्रानुवर्तिनी तत्त्वचिन्ता से मन को कल्याणकारी आत्मा से संयुक्त करता है। वह मन को इन्द्रिय गोचर अर्थात् बाह्य
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अर्हद्गीता
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